काली मां का एक मंदिर ऐसा भी है जहां पर भक्त सोने और चांदी के ताले चढ़ाते हैं। कहां है ये मंदिर और क्या है ताला चढ़ाने का कारण , पढ़िए
New Delhi, Oct 22: हमारे देश में मंदिरों से जुड़ी कई परंपराएं हैं। हर मंदिर का अपना इतिहास होता है, अलग मान्यताएं होती हैं। भक्त इन मंदिरों में अपनी मन्नत पूरी करने के लिए अजीब चीजें करते हैं। हम आपको आज ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने वाले हैं। ये मंदिर यूपी में हैं। यहां की खास बात ये है कि इस मंदिर में भक्तों का मन्नत मांगने का तरीका अलग है। काली माता के इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भक्तों की मुराद जरूर पूरी होती है। लोग अक्सर मंदिरों में पैसा चढ़ाते हैं, सोना चांदी चढ़ाते हैं। लेकिन इस खास मंदिर की बात ही अलग है।
सोने-चांदी के ताले चढ़ाते हैं
ये मंदिर इस लिए प्रसिद्ध है। यहां पर भक्त माता को प्रसन्न करने के लिए और अपनी मन्नत पूरी करने के लिए सोने-चादी और दूसरी मूल्यवान वस्तुओं से बने ताले चढ़ावे में चढ़ाते हैं। आम तौर पर लोग मंदिरों में फल, फूल, माला और अगरबत्ती का चढ़ावा चढ़ाते हैं। लेकिन ये मंदिर इस मामले में अलग है। खास बात ये है कि लोगों की मन्नतें पूरी भी होती हैं, जिसके कारण ये परंपरा बढ़ती ही जा रही है।
कानपुर में हैं मंदिर
हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं वो उत्तर प्रदेश के कानपुर में है। कानपुर के बंगाली मोहाल क्षेत्र के काली मां के मंदिर में आज भी रोजाना भक्त ताले चढ़ाते हैं। भक्तों का मानना है कि मातारानी इस से प्रसन्न हो जाती हैं। उनकी मुरादें पूरी हो जाती हैं। इसलिए मंदिर के गेट पर, मंदिर परिसर में पेड़ पर लोग ताले लगाते हैं। इस मंदिर में सैकड़ों तैले हैं, जो भक्तों ने चढ़ाए हैं। कई ताले तो सोने और चांदी से बने हैं जिनकी कीमत बहुत ज्यादा है।
1949 में बना था मंदिर
इस मंदिर के पुजारी रवीन्द्र नाथ बताते हैं कि 1949 में इस मंदिर का निर्माण हुआ और तभी से यहां इस रिवाज का पालन किया जा रहा है। उन्होंने आगे बताया कि मंदिर में आने वाले श्रद्धालु आमतौर पर लोहे के बने ताले चढ़ाते हैं। लेकिन नवरात्रि के दिनों में लोग यहां सोने, चांदी और अन्य मूल्यवान धातुओं के बने तालों का चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। नवरात्रि में भक्तों की संख्या भी बढ़ जाती है।
हर दिन आते हैं 500 भक्त
कानपुर के काली मां के इस मंदिर में हर दिन करीब 500 भक्त आते हैं और देवी दुर्गा की विशालकाय प्रतिमा के सामने ताले अर्पित करते हैं। ताले सीधे प्रतिमा के सामने नहीं रखे जाते, बल्कि प्रतिमा से कुछ दूर बने खंभों में लगी रस्सियों में बांधे जाते हैं। इस अनोखी परंपरा के पीछे एक दिलचस्प कहानी भी है। जिसके बारे में मंदिर के पुजारी ने जानकारी दी है। ये भी काफी दिलचस्प है।
ताले चढ़ाने की वजह
इस मंदिर में ताले चढ़ाने के पीछे का कारण क्या है, ऐसी मान्यता है कि मंदिर के पहले पुजारी ताराचंद जिन्होंने मंदिर का निर्माण कराया था, उन्होने देवी की प्रतिमा को जंजीर और ताले मे बांध दिया था जब काली मां के एक भक्त हत्या के झूठे मुकदमे मे फंस गए थे। ताराचंद ने प्रतिज्ञा की कि जब तक देवी भक्त को आशीर्वाद नहीं देंगी और उसे निर्दोष साबित नहीं करेंगी वह ताला जंजीर नहीं खोलेंगे।
भक्त के रिहा होने पर आजाद हुई देवी
देवी के भक्त को जेल हो जाने के बाद ताराचंद ने सामान्य पूजा और आरती नहीं की और देवी को जंजीर और ताले में बंधा छोड़ दिया। कई महीनों तक मंदिर का यही हाल रहा। भक्त मंदिर में आते और ये देख कर हैरान हो जाते थे। महीनों बाद जब फैसला भक्त के पक्ष में आया और अदालत ने उसे बरी कर दिया तो देवी मां को जंजीर और ताले से आजादी मिली। इस मंदिर में ताले का चढ़ावा चढ़ाने की शुरुआत हुई जो आज तक जारी है।
भक्तों को चमत्कार की उम्मीद
इस मंदिर में ताला चढ़ाने की जो कहानी है, उसके बारे में जानने के बाद भक्त यहां पर और आने लगे. उनको लगता है कि देवी मां प्रसन्न हो कर उनकी समस्या का निवारण करेंगी। नवरात्रि के दिनों में, यहां भक्तों की संख्या हजारों में पहुंच जाती है और सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर से भक्त अपनी मनोकामना लेकर इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर की प्रसिद्धी तेजी से फैल रही है।
क्या होता है तालों का
इस मंदिर में लगातार ताले चढ़ाए जा रहे हैं। ऐसे में सवाल ये है कि इन तालों का होता क्या है। इस बारे में जो जानकरी मिली है। उसके मुताबिक इन तालों को बेच दिया जाता है। कई बार तालों को प्रसाद के रूप में भक्तों को भी दे दिया जाता है। सोने और चांदी के महंगो तालों को संभाल के रखा जाता है। इन तालों से जो आमदनी होती है उस से मंदिर का रख रखाव किया जाता है।