भगवद गीता हिंदुओं की धार्मिक पुस्तक ही नहीं है बल्कि इसमें जीवन का सार बताया गया है । गीता के उपदेश मनुष्य को हर पथ पर आगे बढ़ने का ज्ञान देते हैं ।
New Delhi, Feb 01 : मनुष्य योनि में जन्म और उसके बाद शुरू होने वाले संघर्ष बिलकुल भी आसान नहीं हैं । सफलता, असफलता, सुख, दुख, सही, गलत आखिर इन सबसे कैसे निपटा जाए । कैसे मनुष्य खुद को आने वाली परिस्थिति के लिए तैयार करे । ऐसी तमाम परेशानियों का हल है गीता में, भगवत गीता महज एक धार्मिक पुस्तक नहीं है यह जीवन जीने का एक तरीका है । गीता में लिखी बातें मनुष्य यदि समझ जाए तो उसके लिए जीवन को जीना कठिन नहीं बहुत ही सरल हो जाता है ।
क्रोध पर नियंत्रण पाना ही आपकी सबसे बड़ी जीत है
गीता में लिखा है – ‘क्रोध से भ्रम पैदा होता है. भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है. जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है.’
कर्म किए जा फल की चिंता ना कर
गीता में लिखा है – ‘जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का नजरिया सही है.’
मन पर नियंत्रण आवश्यक है
गीता में लिखा हे – ‘जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है.’ अर्थात अपने मन पर नियंत्रण अति आवश्यक है आपका मन ही है जो आपको एक पल में संत ओर दूसरे पल में ही शैतान बना सकता है ।
सेल्फ असेसमेंट करें
गीता में लिखा है – ‘आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो. अनुशासित रहो, उठो.’
खुद पर विश्वास करें
गीता में लिखा है ‘मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है. जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है.’ इसके आप ऐसे समझ सकते हैं कि यदि आप किसी एक ही बात को लेकर बैठ जाएं और उसी के बारे में सोच विचार करते रहें तो क्या होगा । निश्चय ही आप उस विचार के जाल में खुद को फंसा हुआ महसूस करेंगे और धीरे-धीरे खुद को भी वैसा ही महसूस करने लगेंगे ।
हर कर्म का फल जरूर मिलेगा
गीता में लिखा है – ‘इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है.’ अर्थात जो भी कर्म आपने किए हैं वो व्यर्थ नहीं जाएंगे हर कर्म का एक नियत फल आपके लिए ईश्वर ने तय किया हुआ है ।
साधना जरूरी है
गीता में लिखा है – ‘मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है.’
खुद पर रखें विश्वास, और फिर करें
गीता में लिखा है – ‘व्यक्ति जो चाहे बन सकता है, यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे.’ वह वही बन जाता है जैसा वो बनना चाहता है, बस उसे अपनी लगन और मेहनत का त्याग नहीं करना चाहिए ।
तनाव आपके कर्मों की ही सजा
गीता में लिखा है – ‘अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करता है.’ अर्थात वो कर्म जो सही नहीं है उन्हें ना करें ।
स्वयं के कार्य पहले देखें
आपने ये बात अकसर सुनी होगी जो दूसरों की मदद करता है उस पर ईश्वर की विशेष कृपा होती है । लेकिन क्या आप ये जानते हैं गीता में क्या लिखा है । गीता के उपदेश के अनुसार – ‘किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े.’ यानी दूसरे के काम में पड़ने से पहले ये तो जान लो कि तुमहारा काम भलि प्रकार से हुआ है कि नहीं ।
काम ऐसे करें कि नाम हो जाए
गीता में लिखा है – ‘जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है.’ अर्थात सतत परिश्रम करने वाला व्यक्ति सदैव सफल होता है ।
काम ही खुशी है – ‘जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं.’ गीता के इस उपदेश के अनुसार मनुष्य यदि अपने काम को आनंद के साथ करना शुरू कर दे तो उसे बाहरी दुनिया की कोई चिंता ही नहीं रह जाएगी । वह संतुष्ट होगा और दूसरों को भी अपने कार्य से संतुष्ट रखेगा ।