संतान के लिए किया जाने वाला अहोई अष्टमी का व्रत इस बार 12 अक्टूबर को पड़ रहा है । आगे जानें इस व्रत का महत्व और विधि ।
New Delhi, Oct 11 : करवा चौथ जहां पति की दीर्घायु के लिए रखा जाता है वहीं इसके ठीक 4 दिन बाद अहोई अष्टमी का व्रत आता है जो संतान की दीर्घायु और शुभेच्छा के लिए किया जाता है । संतान के कल्याण और उज्वल भविष्य की प्रार्थना के साथ किया जाने वाला अहोई अष्टमी का व्रत अहोई माता को समर्पित होता है । इस व्रत के जरिए माताएं अहोई माता से अपनी संतान की शिक्षा में प्रगति, करियर में प्रमोशन और उसके निजी जीवन में चल रही दिक्कतों को दूर करने का वरदान मांग सकती हैं । ये दिन आपके और आपकी संतान के बीच मधुर संबंधों की नींव को और भी मजबूत करता है ।
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व – कार्तिक मास की अष्टमी को अहोई माता का व्रत रखा जाता है । वो महिलाएं जिनकी संतान हैं और वो जो संतान प्राप्ति की कामना कर रही हैं उनके लिए ये व्रत विशेष लाभकारी होता है । जो महिलाएं लंबे समय से संतान के लिए तरस रही हैं, जिन्हें गर्भ ना ठहरने जैसी परेशानी हैं वो भी ये व्रत अहोई माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त कर सकती हैं । ये व्रत सभी विवाहित महिलाओं के लिए शुभकारी माना जाता है । इस दिन भी उपवास रखा जाता है और शाम को चंद्र दर्शन के साथ व्रत खोला जाता है । भारत के कई स्थानों में तारे के दर्शन कर भी व्रत को खोला जाता है ।
अहोई अष्टमी के व्रत की विधि – किसी भी व्रत के लिए सुबह का समय बेहद शुभ होता है । अहोई के व्रत के लिए भी सुबह सवेरे उठकर स्नान आदि करके अहोई माता के व्रत का संकल्प लें । गेरू या लाल रंग से अहोई माता का चित्र दीवार पर बनाएं, बाजार से माता के चित्र वाला कैलेंडर लाकर भी लगा सकते हैं । अहोई की पूजा सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर की जाती है । पूजा सामग्री में इन चीजों को जरूर रखें – एक चांदी या सफेद धातु की अहोई, चांदी की मोतियों की माला, जल से भरा हुआ कलश, दूध-भात, हलवा, फूल और जलता हुआ दीपक ।
अहोई अष्टमी पूजा की विधि – सबसे पहले अहोई माता को रोली लगाएं । पुष्प अर्पित करें, दीपक से आरती उतारें । माता को मीठा प्रसाद अर्पित करें । फिर हाथ में गेहूं के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा किसी कन्या या सुहागिन स्त्री से सुनें । कथा पूरी होने के बाद चांदी की माला गले में पहन लें और हाथ में रखे गेहूं के दाने सासू मां को दे दें । अब चांद निकलने का इंतजार करें । जब चांद निकल आए तो चंद्रमा को अर्घ्य देकर, संतान को भोजन कराकर खुद भोजन कर लें । अहोई माता से प्रार्थना करें कि आपकी संतान को दीर्घायु प्रदान करें ।