आधुनिक जीवनशैली में बीमारियों की सबसे बड़ी वजह बनकर सामने आ रहा है तनाव जो मनुष्य को डिप्रेशन की ओर ले जाता है । क्या इसका कोई इलाज है ?
New Delhi, Oct 11 : रोजमर्रा की भागदौड़, काम का प्रेशर, ऑड शिफ्ट्स, ओवरटाइम ये सब आधुनिक जीवनशैली की देन हैं । यहां हम सेहत से ज्यादा भौतिक वस्तुओं पर जोर देते हैं लेकिन हमें इन सब से क्या मिल रहा है । हमें मिल रहा है तनाव जो आगे चलकर अवसाद यानी डिप्रेशन की शक्ल ले लेता है । जी हां, हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक आधुनिक जीवनशैली इंसान को तनाव की गहरी खाई में ले जा रही है जहां से मनुष्य का बाहर निकल पाना मुश्किल हो जाता है । ऐसे में बहुत जरूरी है कि रोजमर्रा के कामों के साथ तनाव से बचने का भी साधन निकाला जाए ।
तनाव और डिप्रेशन के बढ़ते मामलों ने डॉक्टर्स को भी परेशान कर दिया है । इस पर हुए शोध के नतीजों की मानें तो इन परेशानियों का एक हल है, और वो है संगीत । मॉर्डन लाइफस्टाइल में व्यस्त शख्स अगर दिन के कुछ मिनट गीत-संगीत में बिताए तो उसे तनाव की समस्या से दो चार नहीं होना पड़ेगा । कई डॉक्टर्स इसे म्यूजिक थेरेपी का भी नाम देते हैं । इस थेरेपी में आपको अपने मनपसंद गाने सुनने हैं । दिन में किसी भी उस वक्त जब आप खाली हों, अगर ना हो तो रोज कुछ मिनट हर तीन से चार घंटे में निकालें अपने लिए ।
संगीत में ऐसी फ्रीक्वेंसी होती है जो दिमाग को सुकून देती है । दिमाग के उन हिस्सों को शांत करती है जो परेशानी में हानिकारक डिप्रेशन पैदा करने वाले रसायन पैदा करते हैं । बल्कि शरीर में ऐसे रसायन बनाती हैं जो व्यक्ति को तनाव मुक्त करते हैं । संगीत सुनते हुए ये ध्यान रखें कि आप बहुत तेज म्यूजिक ना सुनें नहीं तो लेने के देने भी पड़ सकते हैं । संगीत सुनने से मतलब ये है कि ऐसा म्यजिक जो रिलैक्स करता है आप इसमें धर्म से जुड़ी कुछ बातें, कुछ धुनें सुन सकते हैं । कुछ मंत्रों का सुन सकते हैं या आपके मनपसंद फिल्मी सुकूनदायक गानें ।
डॉक्टर्स के मुताबिक किताबें पढ़ने से भी तनाव से मुक्ति मिल सकती है । इसके अलावा जिन्हे डांस का शौक हो वो डांस करके अपना तनाव दूर कर सकते हैं । एक रिपोर्ट के मुताबिक साउथ ईस्ट एशिया में डिप्रेशन के शिकार लोगों का आंकड़ा 8.6 करोड़ है । रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आत्महत्या की इर भी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा है । रिपोर्ट के मुताबिक साल 2012 में 15-29 साल के लोगों में प्रति एक लाख व्यक्तियों पर सुसाइड रेट 35.5 फीसदी थी, इंडोनेशिया और नेपाल में ये दर महज 3.6 और 25.8 फीसदी है । आत्महत्या के कारणों में सबसे बड़ी वजह डिप्रेशन को माना गया है ।